अगर मेहा दिव्यांग हवं त मैं खुद ल महत्व दे बर कइसे सीख सकत हवं?
अगर कोनो महिला अपन परिवार, इस्कूल अउ जातसमाज के सहयोग ले बड़े होके बने असन ले जिनगी जी सकत हे, त ओखर भीतर आत्म-सम्मान के भावना ऊंचा होही, भले ओहा दिव्यांग हो के झन हो। लेकिन कोनो महिला, अइसन सोचत बड़े होए के दिव्यांग होए के कारन ओखर कोनो मोल नइ हे, त ओला अपन आप ल महत्व दे बर कड़ा मेहनत करे बर लगही। अउ अइसन कर पाना आसान नइ होवए, एखर बर नान-नान कदम उठाए बर पड़थे।
पहिला कदम हे दूसर मनखे मन संग मेल-जोल करना।
जइसे-जइसे दूसर माईलोगन तुमन ल जाने बर लगहीं, ओमन ल पता चलही के दिव्यांग अउ सामान्य माईलोगन म बहुत जादा फरक नइ रहय। जब तुमन अपन घर-दुआरी ले बाहिर निकहू त दूसर मन संग मेल-जोल अउ गोठबात करना आसान होवत जाही।
दूसर कदम हे माईलोगन बर कोनो समूह बनाना या अइसन कोनो समूह म सामिल होना हे।
दूसर मनखे संग बात करे ले तुमन ल अपन ताकत अउ कमजोरी के बारे म पता चलही। कोनो समूह म माईलोगन ल अपन बात रखे के बढ़िया अउसर मिल सकत हे। लेकिन सबो झन ल एक बात ले सहमत होए ल चाही के समूह के गोठबात ल बाहिर नइ कहिना-बोलना चाही।
तुमन, दिव्यांगता वाले माईलोगन बर बने कोनो समूह म सामिल हो सकत हव या फेर कोनो नवा समहू बना सकत हव। इहां तुमन दिव्यांगता ले पइदा होवइया चुनौती के बारे म अपन बिचार अउ अनुभव ल बांट सकत हव। अपन सुख-दुख ल घलो गोठिया सकत हव अउ एक-दूसर ल सहारा दे सकत हव।
एक-दूसर के सहारा ले तुमन आत्मनिरभर बने बर भी सीख सकत हव। दुनिया मा अइसन अब्बड़ झन माईलोगन हे, जेन मन म कोनो-न-कोनो किसम के दिव्यांगता हे। एमन डाक्टर, नर्स, दुकानदार, लेखक, सिकछक, किसान अउ कइ किसम के पद म हें। एक-दूसर के मदद के जरिए तुमन अपन भविस ल बना सकत हव।
जरूरी बात: तुमन जेन कर सकत हव, उही म धियान देना चाही, जेन नइ कर सकत हव ओला छोड़ देना चाही।