बच्चों को लेकर आम टकराव क्या हैं
कई देशों में महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा कद्र या सम्मान नहीं मिलता है। कई परिवार, विशेषतः विकासशील देशों में, लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को पसंद करते हैं क्योंकि लड़को से बुढ़ापे में अपने माता पिता का सहयोग करने की उम्मीद होती है। इसलिए, परिवारों द्वारा सभी उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के साधनों को बेटियों की तुलना में उनके बेटों को प्रदान करने की संभावना ज्यादा होती है। कई महिलायें अब इस रिवाज के साथ सहमत हैं; वे अपनी बेटियों के लिए बेहतर जीवन चाहती हैं और परंपराओं को चुनौती देकर अपने पति के साथ चर्चा करने के लिए तैयार हैं कि कैसे अपने सभी बच्चों को उनके लिंगों की परवाह किए बगैर समान व्यवहार करना चीहिये और शिक्षित करना चाहिये ।
व्यापक धारणा है कि लड़कियां उनके परिवारों पर और समाज पर एक बोझ हैं, और बावजूद इस तथ्य के कि यह दुनिया में हर जगह कानून द्वारा प्रतिबंधित है, कई देशों में कुछ परिवार अभी भी एक महिला भ्रूण का गर्भपात करने के लिए गर्भवती महिलाओं पर दबाव डालते हैं और यहां तक की भोजन बंद कर के और स्वास्थ्य देखभाल जैसी अन्य आवश्यकताओं को दबा कर के वे युवा लड़कियों की (परोक्ष तरीके से) हत्या कर देते हैं । भारत में, उदाहरण के लिए, करीब 750,000 लड़कियों का सालाना गर्भपात किया जाता है इसलिये एक महिला को अपनी बालिका को बचाना बहुत मुश्किल हो सकता है ।
कई विकासशील देशों में महिलाओं पर बेटे करने के दबाव भयानक हैं और लड़कों को देने में नाकाम रहने वाली महिलाओं को अक्सर (पति से, या परिवार के अन्य सदस्यों से, ससुराल से) खराब व्यवहार का सामना करना पड़ता है, अत्याचार का सामना करना पड़ता है या यहां तक कि घर से बाहर भी फेंक दिया जाता है। कुछ ना हो तो, उन्हें दोषी महसूस करने के लिए मजबूर किया जाता है और परिवार में उनकी कद्र और भी कम हो जाती है।